महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। वे जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। उनके जीवन, शिक्षाओं और योगदान ने जैन धर्म को एक सुदृढ़ स्वरूप प्रदान किया। नीचे महावीर स्वामी के विषय में संपूर्ण जानकारी दी गई है:
1. जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- पूरा नाम: वर्धमान महावीर
- जन्म: 599 ईसा पूर्व (कुछ मान्यताओं के अनुसार 540 ईसा पूर्व), कुण्डलपुर (वर्तमान बिहार का वैशाली जिला)
- पिता का नाम: सिद्धार्थ (एक राजा थे)
- माता का नाम: त्रिशला (लिच्छवी गणराज्य की राजकुमारी)
- वंश: इक्ष्वाकु वंश
- गोत्र: कश्यप
महावीर स्वामी का बचपन राजसी वैभव में बीता। वे अत्यंत बुद्धिमान, साहसी और संवेदनशील थे। उन्होंने सत्य, अहिंसा और तपस्या में रुचि बचपन से ही दिखाई।
2. संन्यास और तपस्या:
- संन्यास ग्रहण: 30 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग कर संन्यास ले लिया।
- उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तप और ध्यान किया। इस दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ सही।
- 13वें वर्ष में कैवल्य ज्ञान (सर्वज्ञान) की प्राप्ति हुई, जिससे वे अरिहंत और जिन कहलाए।
3. शिक्षाएं और सिद्धांत:
महावीर स्वामी ने जो उपदेश दिए, वे जैन धर्म के मूल स्तंभ बने। उनकी प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:
पंच महाव्रत (पाँच प्रमुख व्रत):
- अहिंसा (अहिंसा परमो धर्म): किसी भी जीव को कष्ट न पहुँचाना
- सत्य: सच्चाई बोलना और व्यवहार में लाना
- अस्तेय (चोरी न करना): बिना अनुमति किसी वस्तु को न लेना
- ब्रह्मचर्य: संयमित और शुद्ध जीवन
- अपरिग्रह: अत्यधिक संग्रह और लोभ से बचना
अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत:
- अनेकांतवाद: हर वस्तु और सत्य को अनेक दृष्टिकोणों से देखना
- सय्यम और तपस्या: आत्मा की शुद्धि के लिए
- कर्म सिद्धांत: प्रत्येक कार्य का फल कर्म के अनुसार मिलता है
- मोक्ष मार्ग: सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र द्वारा मोक्ष की प्राप्ति
4. अनुयायी और प्रभाव:
- महावीर स्वामी ने जैन संघ की स्थापना की।
- उनके प्रमुख अनुयायियों में राजा बिम्बिसार, राजा चेलक और अनेक सामान्य जन शामिल थे।
- उन्होंने समाज को अहिंसा, सहिष्णुता और आत्मानुशासन का मार्ग दिखाया।
5. निर्वाण:
- मृत्यु/निर्वाण: 527 ईसा पूर्व, पावापुरी (वर्तमान बिहार में)
- उनकी मृत्यु के बाद जैन धर्म दो प्रमुख शाखाओं में विभाजित हुआ:
- दिगंबर: जो नग्न तपस्या में विश्वास रखते हैं
- श्वेतांबर: जो सफेद वस्त्र पहनते हैं
6. स्मारक और पर्व:
- महावीर जयंती: उनका जन्म दिवस, चैत्र माह में मनाया जाता है
- पावापुरी: उनका निर्वाण स्थल, जो जैन तीर्थ स्थल है
- जैन आगम ग्रंथ: उनकी शिक्षाएं जैन आगमों में संग्रहीत हैं
महावीर स्वामी का जीवनवृत्त
1. जन्म और पृष्ठभूमि:
- जन्म तिथि: चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, 599 ईसा पूर्व (जैन परंपरा अनुसार)
- स्थान: कुण्डलपुर, जो वर्तमान में बिहार राज्य के वैशाली जिले में स्थित है
- वंश: वे इक्ष्वाकु वंश से थे
- पिता: राजा सिद्धार्थ – ज्ञातृक वंश के राजा
- माता: रानी त्रिशला – लिच्छवी गणराज्य की राजकुमारी
- बचपन का नाम: वर्धमान (जिसका अर्थ है—‘वृद्धि’ या ‘उन्नति करने वाला’)
महत्वपूर्ण कथा: वर्धमान का जन्म शुभ संयोगों और दिव्य स्वप्नों के साथ हुआ था। त्रिशला देवी ने 14 शुभ स्वप्न देखे, जिन्हें उनके ज्योतिषियों ने एक महान आत्मा के आगमन का संकेत माना।
2. युवावस्था और संन्यास:
वर्धमान का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ और उनके एक पुत्र भी हुआ—अनोज्जा कुमार।
संन्यास: 30 वर्ष की आयु में, उन्होंने परिवार, वैभव और राजपाट का त्याग कर दिगंबर रूप में संन्यास ले लिया। उन्होंने जंगलों, गाँवों, नगरों में भटककर कठोर तप किया, जिसमें वे मौन साधना, उपवास, और ध्यान में लीन रहते थे।
3. तप और कैवल्य ज्ञान:
महावीर स्वामी ने 12 साल तक घोर तपस्या की। वे न केवल शारीरिक तप, बल्कि मानसिक और आत्मिक तप में लीन रहे। उन्होंने नित्य उपवास, मौन, ध्यान और विकट स्थितियों में भी आत्म-नियंत्रण का पालन किया।
कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति: 13वें वर्ष में, ऋजुपालिका नदी के तट पर साले वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। अब वे अरिहंत (शत्रु-विजेता), जिन (इंद्रियों के विजेता) और महावीर कहलाए।
महावीर स्वामी की शिक्षाएँ
मुख्य सिद्धांत:
1. पंच महाव्रत (पाँच व्रत):
- अहिंसा: सभी प्राणियों के प्रति करुणा और हिंसा से परहेज
- सत्य: सच्चाई बोलना, लेकिन ऐसा जो किसी को आहत न करे
- अस्तेय: चोरी न करना, बिना अधिकार कुछ न लेना
- ब्रह्मचर्य: इन्द्रिय संयम और विचारों की पवित्रता
- अपरिग्रह: आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना
2. त्रिरत्न (तीन रत्न):
- सम्यक दर्शन: सत्य पर विश्वास
- सम्यक ज्ञान: वस्तुओं को यथार्थ रूप में जानना
- सम्यक चरित्र: सही आचरण और जीवनशैली
3. अनेकांतवाद:
- सत्य को एक दृष्टिकोण से न देखकर, विभिन्न दृष्टिकोणों से देखना। यह विचार सहिष्णुता और संवाद को बढ़ावा देता है।
4. स्यादवाद (सापेक्षवाद):
- हर कथन और तथ्य को ‘स्यात्’ (संभावना) के साथ देखा जाए, जैसे—“स्यात अस्ति” (शायद है), “स्यात नास्ति” (शायद नहीं है) आदि।
5. कर्म सिद्धांत:
- हर आत्मा अपने कर्मों की उत्तरदायी है। अच्छे कर्म मोक्ष के मार्ग में सहायक हैं, जबकि बुरे कर्म बंधन उत्पन्न करते हैं।
जैन धर्म पर प्रभाव और संगठन:
- महावीर स्वामी ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार 30 वर्षों तक किया।
- उनके अनुयायी सभी वर्गों—राजा, व्यापारी, किसान, स्त्रियाँ—में थे।
- उन्होंने चतुर्विध संघ की स्थापना की:
- साधु
- साध्वी
- श्रावक
- श्राविका
यह समाज आज भी जैन धर्म की मूल संरचना है।
निर्वाण और स्मृति:
- निर्वाण (मुक्ति): 527 ईसा पूर्व, दीपावली के दिन पावापुरी (बिहार) में हुआ।
- पावापुरी: आज यह स्थान एक प्रमुख जैन तीर्थस्थल है, जहाँ "जल मंदिर" स्थित है।
महावीर स्वामी की शिक्षाओं का आज का महत्व:
- अहिंसा: आज के हिंसात्मक समाज में शांति का मार्ग
- परिग्रह त्याग: उपभोक्तावादी संस्कृति में संतुलन और संयम
- ध्यान और आत्मानुशासन: मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का आधार